सूचना देने में कोताही बरतने वाले अधिकारियों पर लगाया जुर्माना : नारायण बारेठ

सूचना देने में कोताही बरतने वाले अधिकारियों पर लगाया जुर्माना : नारायण बारेठ

राजू चारण

बाड़मेर ॥ राज्य सूचना आयोग ने नगरीय विकास और पंचायती राज संस्थाओ में नागरिको के आवेदनों के प्रति उपेक्षा भाव रखने वाले अधिकारियो पर सख़्ती दिखाई है। आयोग ने सूचना देने में कोताही बरतने पर भीलवाड़ा में आसींद नगर पालिका के अधिशाषी अधिकारी पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया है।

आयोग ने यह कार्यवाही तब की जब आसींद के शहीद मोहम्मद शेख शिकायत की कि उन्हें दो साल से नगरीय संस्था जानबूझकर सूचना मुहैया नहीं करवा रही है। शेख ने अपने कस्बे के वार्ड में सड़क निर्माण से जुडी सूचना मांगी थी। पर पालिका ने उनके आवेदन को अनसुना कर दिया। आयोग ने अधिकारी को नोटिस भेज कर सफाई मांगी। पर अधिकारी ने कोई जवाब नहीं दिया। इस पर सूचना आयुक्त नारायण बारेठ ने नाराजगी जाहिर की और अधिकारी पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया।

आयोग ने कहा कि दो बार शास्ति का नोटिस भेजने के बावजूद अधिकारी ने न तो सूचना उपलब्ध करवाई और न ही कोई जवाब दिया। आयोग ने निर्देश दिया कि यह राशि अधिकारी के वेतन से वसूल की जाये। आयोग ने पालिका प्रशासन से कहा है कि वो आवेदक नागरिक को पंद्रह दिन में रेकॉर्ड के मुताबिक सूचना उपलब्ध करवाए।

आयोग ने झालावाड़ में इकलेरा के विकास अधिकार पर पांच हजार रूपये जुर्माना लगाने का निर्देश दिया है। आयोग ने विकास अधिकारी से एक सूचना आवेदन के बारे में जवाब तलब किया था। मगर अधिकारी ने पर्याप्त मौका देने के बावजूद भी कोई जवाब नहीं दिया। ऐसे ही सूचना आयुक्त बारेठ ने झालावाड़ में उप पंजीयक पर भी पांच हजार रूपये की शास्ति आरोपित की है। ये जुर्माना राशि अधिकारियो के वेतन से काटी जाएगी।

राज्य सूचना आयोग ने बूंदी जिले में हिंगोनिया के ग्राम विकास अधिकारी पर दो हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। आयोग ने यह आदेश तब दिया जब एक स्थानीय व्यक्ति ने सरपंच के वेतन भतो की जानकारी मांगी और ग्राम विकास अधिकारी ने इसे अनसुना कर दिया। आयोग ने जुर्माना लगाते हुए पंद्रह दिन में सूचना मुहैया कराने का आदेश दिया है। इस मामले की सुनवाई करते हुए सूचना आयुक्त बारेठ ने कहा कि सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद लोगो में अपने अपने क्षेत्र में सूचना हासिल करने की ललक पैदा हुई है। आयोग ने कहा नागरिको के इस रुझान की उपेक्षा करना इस कानून का निरादर होगा।

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