मौजूदा हालात को देखते हुए जनहित में राजभवन को बनाना चाहिए कोविड सेंटर

मौजूदा हालात को देखते हुए जनहित में राजभवन को बनाना चाहिए कोविड सेंटर
कलराज मिश्र को खुद आगे आकर पहल करनी चाहिए

राजू चारण

बाड़मेर ।। सैकड़ो बीघा में फैले विशालकाय राजभवन को मौजूदा हालात को देखते हुए कोविड केंद्र में तब्दील कर देना चाहिए । इसके लिए राज्य सरकार को जारी करने चाहिए अविलम्ब आदेश । वैसे भी यह विशाल भवन सरकारी धन को पलीता लगाने के अलावा अन्य कोई कार्य नही आ रहा है ।

प्रति वर्ष करोड़ो रूपये स्वाहा होने वाले राजभवन में ऐशो आराम के अलावा कुछ नही होता है । सैकड़ो का स्टाफ मौजूद है और हर साल मुफ्त की तनख्वाह पाने वालों पर राज्य सरकार करोड़ो रूपये फूंकती है । कुछ पत्रावलियों को निपटाने और पांच साल में एक बार मंत्री संत्री आदि को शपथ दिलाने के अलावा देशभर में आजादी से पहले अंग्रेजी शासन के दौरान ओर उससे पहले राजा महाराजाओं की तरह ऐश आराम की जिंदगी व्यतीत करने के अलावा राज्यपाल के पास कोई काम नही है । राज्यों में बनने वाली सरकारों को
शपथ ग्रहण का कार्य तो राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश भी दिला सकता है । हमेशा नए राज्यपालों को नियुक्त करते समय शपथग्रहण सीजे द्वारा ही दिलाई जाती है ।

राजनीति में रिटायर होने के क़रीब होने वाले उम्रदराज राजनेताओं को शाही जीवन जीने के अतिरिक्त राज्यपाल के पास कोई प्रशासनिक कार्य नही होता है । वीसी की नियुक्ति होती है तो इसके लिए बाकायदा अटेची गिफ्ट में देने का रिवाज है । जब सारा कार्य मुख्यमंत्री की निगरानी में होता है तो फिर अंग्रेजी शासन व्यवस्था का सफेद हाथी पालने का क्या औचित्य ?

दरअसल अपनी पार्टी के प्रति वफादारों को उपकृत करने के लिए संविधान में इस पद का बंदोबस्त कर रखा है । यह परम्परा आजादी के बाद से लगातार चली आ रही है । कोई नेता राज्य में फिट नही बैठता है तो उसे राज्यपाल बनाकर दूर दराज के सुदूर इलाके में भेज दिया जाता है । मोहनलाल सुखाड़िया, श्रीमती कमला, नवल किशोर, गोविंदसिंह गुर्जर, किरण बेदी तथा राम नाईक इसके उदाहरण है ।

राज्यपाल को न कोई प्रशासनिक अधिकार है और न ही प्रशासन में उसका कोई दखल होता है । वह केंद्र में शासित पार्टी का सिर्फ नुमाइंदा होता है जो केंद्र की सरकार के इशारे पर कार्य करता है । जैसे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ कर रहे है । मुख्यमंत्री को दरकिनार कर सीधे अफसरों को धमकाना संवैधानिक मर्यादाओं के प्रतिकूल है । पश्चिम बंगाल में आज नही तो कल राष्ट्रपति शासन लगना लगभग सुनिश्चित है । केवल मौके की जमीन तलाश की जा रही है ।

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने भी केबिनेट फैसले के बाद भी विधानसभा का सत्र बुलाने में कई दिन लगा दिए थे । जब मंत्रिमंडल की ओर से राजभवन घेराव की धमकी दी गई, तब कलराज मिश्र ने विधानसभा सत्र आहूत करने के लिए पत्रावली पर अपने हस्ताक्षर किए ।

आज कोरोना भड़भड़ी का महाकाल है । राज्यपाल कलराज मिश्र को कोरोना पीड़ितों की सहायतार्थ पच्चीस, पचास-साठ लाख अपनी जेब से देकर जनता जनार्दन में एक अनूठा उदाहरण पेश करना चाहिए । इतने वर्षों से हर माह लाखो रुपये वेतन और भत्तों के रूप में सरकार से वसूल रहे है । गांठ का एक पैसा भी खर्च नही करना पड़ता है । क्योंकि रोटी भी राजभवन के खाते से ही खाई खिलाई जाती है ।

कलराज मिश्र बड़े ही संवेदनशील व्यक्ति है । उनको अविलम्ब राजभवन खाली कर मौजूदा हालात को देखते हुए सरकारी भवन को छोड़कर माउंट आबू चले जाना चाहिए और यहाँ का बंगला कोविड के लिए देकर समूचे देश मे एक नयी मिसाल कायम करनी चाहिए ।

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