घातक सिद्ध होगी सोशल मिडिया माफियाओं के आगे कानून की बेचारगी

घातक सिद्ध होगी सोशल मिडिया माफियाओं के आगे कानून की बेचारगी
राष्ट्रिय राजमार्ग अड़सठ के पश्चिम में वर्जित गतिविधियों पर जिला प्रशासन की मौन स्वीकृति की आड़ में फलफूल रहा सोशल मिडिया माफिया …

राजू चारण

बाड़मेर ।। भारत पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित अमन और शांति के अग्रदूत बाड़मेर जिले में आजादी के बाद से द्रोपदी के चीरहरण के समान अगर किसी कानून की धज्जिया उड़ी हैं तो वह हैं राष्ट्रिय राजमार्ग पन्द्रह वर्तमान में अड़सठ के पश्चिम में वर्जित गतिविधियों पर रोक का कानून।

दरअसल स्वतंत्रता संग्राम के बाद मिली आजादी और भारतवर्ष से पाकिस्तान का अलग होने के बाद भारत पर थोपे गए युद्धकाल के साथ ही अस्तित्व में आए इस कानून का प्रारूप यह कहता हैं कि कोई भी अवांछनीय गतिविधि जिससे राष्ट्र को येनकेन प्रकारेण किसी प्रकार का नुकसान, गोपनीयता, नागरिक सुरक्षा सहित कई मुद्दो पर नियंत्रण के निमित बने कानून के तहत राष्ट्रिय राजमार्ग अड़सठ के पश्चिम में वर्जित गतिविधियों पर पूर्णरूप से पाबंदी लगा दी गई थी, जो आज भी चीरकाल से अनवरत जारी है। आज भी बाड़मेर – जैसलमेर जिले के सैकड़ों गांवों में रात्रिकालीन विचरण पर प्रतिबंध हेतु जिला प्रशासन द्वारा समय समय पर कफ्र्यू की घोषणा की जाती है। किसी भी विदेशी नागरिक, जिले से बाहर के नागरिक व स्वयं जिले के निवासी जो कि राष्ट्रिय राजमार्ग अड़सठ के पश्चिम में निवास नहीं करते हैं उनके राष्ट्रिय राजमार्ग अड़सठ के पश्चिम में किसी भी प्रकार के व्यक्तियों के प्रवेश पर सख्त पाबंदी हैं, सरकारी मशीनरी को छोड़कर!

बावजूद इसके इस प्रतिबंधित क्षैत्र में संदिग्धों की आवाजाही, हजारों वाहनों की बेरोकटोक आवाजाही, जिले व राज्य से बाहर के लोगो द्वारा इस क्षैत्र में जमीन खरीदकर हमेशा के लिए स्थानीय निवासी बनने जैसी गतिविधिया बेरोकटोक संचालित हो रही हैं, और जिला प्रशासन इन सभी गतिविधियों को येनकेन प्रकारेण मौन स्वीकृति प्रदान करता नजर आता है। इन सबके साथ हद तो तब हो जाती हैं जब इस प्रतिबंधित इलाके में व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी से डिग्रीधारी सोशल मिडिया ग्रुप , यू टयूब मिडिया चैनल, फेसबुक मिडिया पेज, काॅपीपेस्ट समाचारों से जुडे़ ब्लाॅग वेबपेज आदि सैकड़ों की तादात में संचालित हो रहे है। जिनका भारत सरकार के समाचार पत्र रजिस्ट्रेशन कार्यालय, भारत सरकार के सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय अथवा किसी भी राज्य सरकार के अधिकृत विभाग से किसी प्रकार का रजिस्ट्रेशन अथवा अनुमति नही है। फिर भी इन तमाम अवैध सोशल मिडिया पर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी खबरों का आदान प्रदान, सम्पादन, बेरोकटोक चलता रहता है। यही नहीं इन सोशल मिडिया माफियाओं को जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, तमाम उपखण्ड प्रशासन, स्थानीय निकाय, सरपंच, प्रधान, प्रमुख, जनप्रतिनिधि, राजनेता, विधायक, सांसद, मंत्री संत्री , प्रभारी मंत्री, हर कोई इंटरव्यू देकर इनके माफिया तंत्र को दिनप्रतिदिन और मजबूती प्रदान करते जा रहे है। जिसका खामियाजा आने वाले समय में न सिर्फ बाड़मेर जैसलमेर की आम अवाम और आबोहवा अपितु समग्र राष्ट्र को भुगतना पड़ सकता है।

गौर करने वाली बात यह हैं कि सोशल मिडिया माफिया से जुडे इन तमाम बैनरों और इनके तथाकथित पत्रकारों को कोई भी सोशल बैनर तनख्वाह नही देता हैं, न ही किसी प्रकार का प्रेस पहचान पत्र जारी किया जाता हैं। बावजूद इसके सैकड़ों की तादात में यह तथाकथित पत्रकार और इनके तथाकथित सोशल बैनर अस्तित्व में जगह जगह पर कायम है।

इतना ही नही, सोशल मिडिया माफिया की पहूंच और पकड़ इतनी मजबूत हो चूकी हें कि इन सीमांत जिलों में आयोजित वीआईपी , वीवीआईपी विजिट के दौरान सुरक्षा घेरे को भेदने के लिए प्रशासन की आंख में थूक कर यह सोशल मिडिया माफिया अपने लिए खुफिया तंत्र की सील ,मोहर से जारी होने वाले प्रवेश कार्ड तक बनवा लेते है। जबकि इनका वास्तविक मिडिया से कोई सरोकार नही होता है। और इन्हे पोषित करने में कुछ अहम भूमिका अधिकारियों संग ली गई सेल्फी की भी है। बड़े अधिकारी और बड़े नेता – राजनेता, मंत्री संत्री के साथ ली गई सेल्फी भी तथाकथित पत्रकारों की गुडविल वाली ईमेज बनाने का मादा रखती है। अन्यथा जो अपने जन्मदाता की तस्वीर अपने साथ नही रखता वही इंसान तथाकथित सेल्फी को अपनी प्रोफाईल पिक्चर क्यों बनाकर रखता है? यह बात लगती और दिखती छोटी हैं, किन्तु अब अगर अति महत्वपूर्ण पहलू पर बात करे तो बाड़मेर जैसलमेर को भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से देखिए… और अब विचार किजिए… कहां तक सुरक्षित हैं हम, हमारी कौमी एकता, हमारा बाड़मेर, हमारा राजस्थान, हमारा देश…।

अब यहां आत्ममंथन की जरूरत हैं, विचार किजिए जो पत्रकार हैं, और जिनके पास प्रिंट व इलेक्ट्राॅनिक मिडिया का बैनर हैं। और जो पत्रकार जिला सूचना एवम् जनसम्पर्क अधिकारी कार्यालय में सूचीबद्ध हैं। उनके अतिरिक्त जिले में खुद को पत्रकार कहने वाले यह आखिर हैं कौन ? कुछ सोशल मिडिया के पत्रकार जिनका काम सिर्फ काॅपी पेस्ट करना, कुछ संदिग्ध जो बिना तनख्वाह बेकार बैठे गाडी, आफिस सबकुछ मेंटेन कर रहे है। कुछ आरटीआइ कार्यकर्ताओं के नाम पर खुद को पत्रकार कहने वाले तथाकथित पत्रकार, कुछ अपने गांव ग्वाड़ में गांव और स्थानीय प्रशासन के लिए सिरदर्द बने माफिया प्रवृति के ऐट पीएम पत्रकार, सब मिलकर एक दिन कोरोना भड़भड़ी की तरह ही बड़ी महामारी बनकर उभरेंगे। तब यही प्रशासन कहेगा कि जनता जनार्दन ने हमे बताया नही कि महामारी फैलने वाली है…

आज जरूरत हैं सोशल मिडिया माफिया को रोकने की। क्योंकि पेंटर बाबू को बीस रूपये देकर कोई भी अपने वाहनों पर प्रेस लिखवा कर तथाकथित पत्रकार बनकर, बिना खुद के वजूद के प्रशासन की जड़े कुरेदना शुरू कर देता है। जिला प्रशासन ने अगर वक्त रहते सोशल मिडिया माफिया पर नकेल नहीं कसी तो नतिजे भयानक पेश आऐंगे। सीमांत जिलों की अहमियत को अब राज्य के हूक्मरान और आला अधिकारियों को समझनी होगी। क्योंकि माफिया कोई भी हो, हल्के में लेंगे तो नुकसान अपनों की कुर्बानी से ही उठाना पड़ता है।

जिला मुख्यालय पर जिला लोक बंधु यादव और पुलिस अधीक्षक आनन्द शर्मा को मैसेज भेज कर इस सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी लेने पर कोई रूझान नहीं आया।

इस सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी लेने पर बाडमेर विधायक मेवाराम जैन ने बताया की अगर ऐसा है तो हमारे देश की सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर बात है, इस सम्बन्ध में आला अधिकारियों से बातचीत करता हूं।

इस सम्बन्ध में केन्द्रीय कृषि एवं राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने बताया की अगर ऐसा है तो हमारी सुरक्षा में सुराख होगा। यह बहुत गंभीर बात है,इस सम्बन्ध में जानकारी मिलने पर सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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