राज्य सरकार ने भेजी अधिकारियों की स्पेशल टीम बाड़मेर
कोराना भड़भड़ी के दौरान कितना फैल ओर कितना हुआ मरीजों की नजर में पास
राजू चारण
बाड़मेर ।। कोरोना की दूसरी लहर आई लेकिन तीसरी लहर अभी मुखिया अशोक गहलोत के हिसाब से बाकी है। बाड़मेर जिले में संक्रमित मरीजों की संख्या का ग्राफ दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। जिले के सरकारी अस्पतालो में मरीजों की बड़ी बड़ी लाइनें लग गई। मरीजों की जान बचाने के लिए पूरे राज्य में नेताओं और अधिकारियों के हिसाब से ऑक्सीजन का संकट हो गया और बेड भी आजकल अस्पतालों में कम हो गए। सभी तरफ कोराना भड़भड़ी से हाहाकार मचा हुआ है और उसके लिए हमारी-आपकी टीम ने अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवाईयां ओर बैड की ऑडिट के लिए आकस्मिक एक टीम द्वारा जांच-पड़ताल किया जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। राज्य सरकार द्वारा आर ए एस अधिकारी अशोक चौधरी को बाड़मेर जिला मुख्यालय पर कोराना भड़भड़ी के चलते नोडल अधिकारी नियुक्त किया है।
अप्रेल महीने में ही बाड़मेर जिले में बिगड़ी हुई स्थिति के बाद सबसे ज्यादा जरूरत अधिकतर मरीजों को सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की थी। विधायक मेवाराम जैन ने अपनी कार्यकुशलता ओर अनुभव से ऑक्सीजन की इस किल्लत व वास्तवित स्थिति को समझने व मूंल्याकन के लिए एक टीम बनाई जिसको ऑक्सीजन की ऑडिट करने को कहा। इस टीम ने जब निजी व सरकारी अस्पताल में जाकर दौरें किए तो वहां के हालात से रू-ब-रू हुए।
हमारे द्वारा जांच-पड़ताल कि गईं तो सामने आया कि मरीजों के सैचुरेशन 95 फिर भी चढ़ा रहे थे ऑक्सीजन, तो कई जगह छूट्दी देने की स्थिति में मरीज था फिर भी अस्पतालों में भर्ती थे।
बाड़मेर जिले के अस्पतालों में कई गड़बडिय़ां पकड़ी और बाड़मेर जिले में ही पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा निजी अस्पतालों का जखीरा खड़ा हो गया है। निजी चिकित्सालय में बायो वेस्ट के निस्तारण को शाय़द ही कभी चिकित्सा विभाग द्वारा जांच-पड़ताल की गई होगी। जिले का चिकित्सा विभाग भी कोराना भड़भड़ी के दौरान संदेह के घेरे में ना आए यह लोगों की नजरों में सवालिया निशान लगा रखा है।
बाड़मेर जिले में सबसे ज्यादा लेबोरेट्रियो पर लेब टेक्नीशियन कहीं ओर जगह पर कामकाज कर रहे हैं और उनके दस्तावेज के नाम पर कोई ओर कोराना भड़भड़ी के कारण ग्रामीण इलाकों के अधिकांश सरकारी अस्पतालों के आगे मरीजों के स्वास्थ्य की जांच-पड़ताल करने के नाम पर खिलवाड़ करने में लगे हुए थे। लेबोरेट्री जांच-पड़ताल करने वाले झोलाछाप की रिपोर्ट को सही मानें या फिर सरकार द्वारा जारी दो वर्ष का डिप्लोमा धारक को। इस सम्बन्ध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा बाबू लाल विश्नोई से मोबाइल नंबर पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन अधिकारी द्वारा फोन नहीं उठाया गया।
राज्य सरकार द्वारा जिला मुख्यालयों पर अमूमन ऑडिट कमेटी में ये अफसर शामिल होंते है जिसमें सीइओ जिला परिषद, उपखंड अधिकारी, मेडिकल कॉलेज के उप प्राचार्य ,मेडिकल कॉलेज के एनेस्थिसिया, एनेस्थिस्ट , बायोमेडिकल इंजीनियर और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग स्टाफ शामिल होता है।
अस्पतालों में जांच में यह सब मिला
– ऑक्सीजन के प्रवाह की नियमित निगरानी नहीं
– निगरानी के लिए वार्ड में किसी की नियुक्ति नहीं
– मरीज खाना खा रहा या टॉयलेट के लिए गया तब भी ऑक्सीजन का प्रवाह चालू
– कुछ मरीजों को छूट्टी दी जा सकती है लेकिन फिर भी वे ऑक्सीजन बेड पर थे
– निजी अस्पतालों के प्राइवेट वार्डों में ऑक्सीजन का मिस यूज देखा गया
– कुछ वार्ड बॉय, नर्सिंग अटेडेंट, नर्सिंग इंचार्ज, रेजीडेंट आदि ऑक्सीजन की खपत एवं संकट को लेकर प्रशिक्षित नहीं मिले
– तकनीकी रूप से ऑक्सीजन के फॉल्ट, प्रेशस व लीकेज आदि की जांच तक नहीं करते थे
– अस्पतालों ने भर्ती मरीजों की वास्तविक स्थिति में भी गड़बडिय़ां थी
– अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी भी नहीं बना रखी थी
हमारी आपकी ओर से दिया गया सुझाव
– ऑक्सीजन का कोटा गंभीर मरीजों के अनुपात के अनुसार तय किया जाए।
– मरीजों के चार्ट पर नियमित निगरानी रखी जाए और जिनको ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है उनको जल्दी ही डिस्चार्ज किया जाए।
– नर्सिंग स्टाफ के पास प्रत्येक मरीज का ऑब्जर्वेशन चार्ट होना चाहिए।
– स्टाफ के पास प्रेशर की जांच की डिवाइस होनी चाहिए, अस्पतालों में कमेटी बनाई जाए जो नियमित निगरानी रखे, ऑकसीजन का रिकार्ड संधारित किया जाए, रेंडम जांच भी अक्सर होनी चाहिए।
– अस्पतालों को जल्दी से ऑक्सीजन कॉन्सेन्टेऊटर खरीदने चाहिए।
– नोडल अधिकारियों को अस्पतालों में ऑक्सीजन के सैचुरेशन पर निगरानी की जरूरत है।
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हमारे अस्पतालों की चैक लिस्ट ऐसे बनाई जाएं
– ऑक्सीजन के पाइप व सिस्टम लीकेज की जांच हो
– मरीज व उसके परिजन अपने स्तर पर ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं बढ़ाए इस पर निगरानी हो
– मरीज खाना खाए, वॉशरूम जाए तब ऑक्सीजन सप्लाई वार्ड स्टाफ से बंद करवाए
– डॉक्टर एवं वार्ड में उपस्थित स्टाफ द्वारा मरीज को प्रोन पॉजिशन में लैटाया जाए, इसके लिए वार्ड में पोस्टर भी लगाए जाए।
– मरीजों को समझाया जाए कि सैचुरेशेन का स्तर 90-94 प्रतिशत उचित रहता है तथा 95 प्रतिशत से अधिक सेचुरेशन पर अतिरिक्त ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती है।
– कम ऑक्सीजन मांग तथा अधिक ऑक्सीजन मांग के मरीजों के प्रतिशत की जांच करें
– प्रति मरीज कितने ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल कर रहे है इसकी भी जांच की जाए
– सिलेंडर एकत्रित तो नहीं किए गए या कोराना भड़भड़ी के दौरान कोई कालाबाजारी तो नहीं की जा रही है, इसकी जांच की जाए
– यह भी जांच की जाए कि क्या मरीज 14 दिन से पूर्व डिस्चार्ज किए जा सकते है
– यह भी जांच की जाए कि क्या मरीज को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होने पर भी वह भविष्य में बेड नहीं मिलने के डर मात्र से अस्पताल में जानबुझकर अनावश्यक भर्ती है।
– रखरखाव व मरम्मत की क्या व्यवस्था है, इसकी जांच करें
– नर्सिंगकर्मी प्रत्येक दो से तीन घंटे में मरीज के सेचुरेशन लेवल जांचते रहे।