राजस्थान में झमेला तो होकर ही रहेगा धमाकेदार,
पंजीरी पाने की दौड़ में विधायक कर रहे है धक्कामुक्की
राजू चारण
बाड़मेर ।। विधान परिषद के गठन की घोषणा से विधायको में पनप रहा असन्तोष कम हो जाएगा, इसकी संभावना बिल्कुल क्षीण हो गई है । पिछले चार पांच दशकों से किसी भी राज्य को विधान परिषद गठन की इजाजत संसद द्वारा नही दी गई है । राजस्थान को इसकी इजाजत शीघ्र मिल जाएगी, यह कयास लगाना मौजूदा हालात में व्यर्थ है । केंद्र की मोदी सरकार कभी नही चाहेगी कि राजस्थान में विधान परिषद गठन करने की इजाजत दी जाए।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायको में उमड़ रहे असन्तोष को भांपते हुए केबिनेट के जरिये विधान परिषद गठन का प्रस्ताव दिल्ली भिजवाया है। विधान परिषद गठन की प्रक्रिया बहुत जटिल है। इसलिए यह मानकर चला जाए कि गहलोत के वर्तमान कार्यकाल तक इसकी इजाजत मिल जाएगी, यह कोरी कल्पना के अलावा और कुछ नही है ।
मुख्यमंत्री गहलोत बखूबी जानते है कि विधायकों का असन्तोष समाप्त नही किया गया तो यह नाराजगी ज्वालामुखी में तब्दील हो सकती है। पायलट खेमा पिछले एक साल से लगातार उत्पात मचा रहा है तो गहलोत के समर्थक विधायक भी अंदर ही अंदर कसमसा रहे है। बसपा और निर्दलीय विधायक भी अपनी वफादारी के लिए मुआवजा मांगने के लिए अड़े हुए है ।
हर वर्ग के तर्क बड़े वाजिब और ठोस है । जब सचिन पायलट खेमे की वजह से गहलोत की गाड़ी बीच सड़क पर हिचकोले खाने लगी थी, तब धक्का देकर निर्दलीय, बसपा विधायकों और गहलोत के समर्थक विधायकों ने फिर से स्टार्ट किया था। यदि ये लोग उस समय गहलोत की गाड़ी को धक्का नही लगाते तो अब तक अशोक गहलोत निवर्तमान मुख्यमंत्री हो जाते। गहलोत ने संकट के समय भरोसा दिलाया था कि हर विधायक को उसकी वफादारी का पूरा मुआवजा मिलेगा। चूँकि वादा किये साल भर का समय हो गया है। लेकिन अभी तक मिठाई बंटेगी, इसकी कहीं तैयारीयां होती दिखाई नही दे रही है।
चारो और निराशा का माहौल है । विधायक मंत्री और बोर्ड आदि के चेयरमैन बनने के लिए उतावले हो रहे है। यद्यपि मौजूदा हालात में भी विधायकों के जमकर काम हो रहे है। कमाने और खाने के लिए तबादलों पर लगी रोक भी हटा ली गई है। लेकिन माननीय सदस्य इससे संतुष्ट नही है। इनको केवल कुर्सी की दरकार है। इससे कम पर वे कतई राजी नही है । इसलिए गहलोत ने विधायकों को पुचकारने की गरज से विधान परिषद का लॉलीपॉप दिखाया है ।
विधान परिषद के लिए सबसे पहले 2008 में वसुंधरा राजे ने पहल की थी। इसी तर्ज पर गहलोत ने अपने पूर्व कार्यकाल में विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर विधान परिषद गठन की मांग केंद्र सरकार से की थी। केंद्र सरकार की ओर से इस बारे में स्पस्टीकरण मांगा था, जो अभी तक नही भिजवाया गया है । ऐसे में अचानक विधान परिषद की मांग को दिल्ली की मोदी सरकार स्वीकार कभी नही करेगी ।
विधायक भी जानते है कि विधान परिषद गठन का प्रस्ताव केवल बरगलाने का प्रयास है । लेकिन अब लगता है कि विधायक बहकावे में नही आने वाले है । सभी ने नए नए सूट सिलवा रखे है । अब उनको पहनने का बेसब्री से इंतजार है । राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत भी इस दफा अपने ही जाल में फंस कर रह गए है । पंजीरी थोड़ी सी है और पंजीरी के लालायित भक्तो की संख्या बहुत ज्यादा है ऐसे में झमेला होना तों मौजूदा हालात में स्वाभाविक है।