कब बैठेंगे हमारे पायलट साइकिल पर ?
राजू चारण
Barmer ।। एक बच्चा जिद्दी ही नही थोड़ा मूर्ख भी था।आए दिन जिद करना उसकी आदतों में शुमार था। कभी टॉफी के लिए लड़ता तो कभी कभार बिस्कुट के लिए । उसकी जिद ने सब घरवालों को परेशान कर रखा था । वह नटखट और अक्ल से पैदल बालक इस बात के लिए अड़ पड़ा कि मुझे तो सिर्फ और सिर्फ साइकिल चाहिए । पिता की ऐसी हैसियत नही थी कि वह अपने बच्चे को नयी साइकिल दिलाए।
बच्चे को माता-पिता के अलावा चाचा, मामा और फूफा आदि ने खूब समझाया कि अभी नही, अगले साल साइकिल अवश्य दिलवा दी जाएगी । जब बच्चे की ख्वाहिश पूरी नही हुई तो वह अपने जैसे दोस्तो के साथ घर से रूठकर भाग गया । बाद में पता लगा कि जिद्दी बालक और उसके साथी मानेसर में जाकर बैठे है ।
बच्चे और उसके दोस्तों को समझाने का प्रयास किया कि साइकिल जल्दी दिलवा दी जाएगी । लेकिन बालक टस से मस नही हुआ । आखिर दादा, दादी और घर के बड़े बुजुर्गों ने हस्तक्षेप कर वादा किया कि घर चलो, जल्दी ही साइकिल दिलवा दी जाएगी । घरवाले भी खुश और बच्चा भी प्रसन्न । बालक इसलिए खुश था कि उसे जल्दी साइकिल मिल जाएगी और घर में बड़ बुजुर्गों ने यह सोचकर प्रसन्न थे कि झांसा देकर बच्चे को अभी तो पटा लिया ।
साल भर होने का आया । न तो साइकिल दिलानी थी और न ही दिलाई गई । बच्चा आये दिन साइकिल के लिए उधम मचाता रहा । लेकिन साइकिल फिर भी नही मिली । जिन दादा, फूफा, मामा और चाचा आदि ने दखल देते हुए शीघ्र साइकिल दिलाने का वादा किया था, अब वे सब बच्चे की जानबूझकर अनदेखी करने लगे । बेचारा बालक अवसाद से ग्रस्त होगया । रोज एक ही राग अलापता है-मुझे साइकिल कब मिलेगी ? लेकिन उसकी आर्तनाद सुनने वाला कोई नही है ।
यह कहानी शायद पूरी तरह बागी नेता सचिन पायलट से मेल खाती होगी । साल भर होने को आया, लेकिन उनको बैठने के लिए अभी तक साइकिल नही मिली है । जबकि कुटुंबरूपी सोनिया, प्रियंका, राहुल, मुखिया अशोक गहलोत, अविनाश पांडे और रणदीप सुरजेवाला ने पक्का आश्वासन दिया था कि एक बार मानेसर छोड़कर आ जाओ, साइकिल तुरन्त मिल जाएगी ।
पिछले 45 साल से राजस्थान और देश की राजनीति को बहुत करीब से देखा है । जिस तरह सचिन पायलट का अपमान हो रहा है, आज तक किसी नेता का ऐसा अपमान होते नही देखा है । बेचारे पायलट दर्जनों बार दिल्ली के चक्कर काट चुके है । सोनिया, राहुल और प्रियंका से मिलने का लम्बे अरसे से प्रयास कर रहे है, मगर उन्हें कोई लिफ्ट देने को तैयार नही है ।
पायलट समर्थकों को हौसला पूरी तरह पस्त हो चुका है । दिखावे के तौर पर जरूर फिल्मों में गैंडा स्वामी की तरह हंस अवश्य रहे है । लेकिन सब पूरी तरह डिप्रेसन में है । पायलट ने खुद तो अपनी फजीहत कराई, अपने समर्थकों की भी जबरदस्त जग हंसाई करा रहे है । शर्म की वजह से क्षेत्र में शक्ल दिखाने के भी काबिल नही रहे है । एक पक्के समर्थक रमेश मीणा तो शर्म की वजह से भूमिगत हो गये है । कई राजनीतिक नेता तो आजकल पायलट से पीछा छुड़ाने के मूड में है, लेकिन जाए कहाँ, यह कुछ भी सूझ नही रहा है ।
पिछले साल की ही तरह पिछले कई दिनों से पायलट दिल्ली में डेरा डाले पड़े है । शीर्ष नेतृत्व से मिलने के लिए आये दिन चक्कर काट रहे है । न सोनिया उन्हें तवज्जो दे रही है और ना ही राहुल बाबा । प्रियंका बिना मिले विदेश चली गई है । सोनिया गांधी भी पांच अगस्त को रूटीन मेडिकल चेकअप के लिए विदेश जा रही है ।
प्रदेश में तीन दिन तक विधायकों की रायशुमारी का प्रायोजित मंचन चला । गहलोत समर्थकों ने पायलट पर ओर पायलट समर्थको पर जमकर कीचड़ उछाली । मंत्रियों संत्रीयो के असली चेहरो से माकन को अवगत कराया । हालांकि इस रायशुमारी की कोई जरूरत नही थी । क्योंकि माकन राजस्थान की हालत से बखूबी परिचित है ।
इस रायशुमारी से गहलोत को तो कोई नुकसान होने वाला है नही, पायलट को कोई फायदा होगा, इसकी संभावनाएं बहुत कम नजर आते है । गहलोत आज भी पायलट समर्थको को तीन मंत्रीमंडल पद से ज्यादा देने को तैयार नही है । यदि इससे ज्यादा पद दिए गहलोत के समर्थक ही उनकी कुर्सी के पायों पर आरी चलाने से नही चूकेंगे ।
जब किसी घर में विवाह होता है तो बहुत पहले तैयारीयां प्रारम्भ हो जाती है । जेवर के अलावा काफी दिनों से संभालकर रखे कपड़ो की सुध ली जाती है । कुछ कपड़े ऐसे होते है जो साफ सफाई करने वाली, धोबन, बर्तन और गीत गाने वालियों को दिए जाते है । अच्छे और महंगे कपड़े बहिन-बेटी के रिजर्व रहते है । अलबत्ता तो गहलोत कुछ भी देने के मूड में नही लगता है । यदि देना भी पड़ा तो वे धोती साड़ी दी जाएगी जो बर्तन और साफ-सफाई वालो के लिए संभाल कर रखी हुई थी ।
बीच में खबर आई थी राजभवन में मंत्रीमंडल पुनर्गठन की तैयारियां शुरू हो गई है और सचिवालय में कमरों की साज सज्जा की जा रही है, लेकिन वह तो रूटीन चेकअप के लिए । भले ही अजय माकन यह घोषणा कर चुके है कि मंत्रीमंडल का शीघ्र विस्तार होगा । लेकिन गहलोत जब तक नही चाहेंगे, तब तक कयास ही कयासों के ढेर लगाए जाते रहेंगे ।